योग से व्यक्ति अपनी अंतर्निहित शक्तियों को संतुलित रूप से विकसित कर सकता है. साथ ही योग पूर्ण स्वानुभूति कराने के साधन भी प्रदान करता है.
आज योग मात्र आश्रमों, साधु-संतों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि पिछले कुछ दशकों में इसने हमारे दैनिक जीवन में अपना स्थान बना लिया है और दुनियाभर में इसके प्रति लोगों में जागरूकता बढ़ी है तथा इसे स्वीकार भी किया है.
आधुनिक चिकित्सा विज्ञान सहित औषधि विज्ञान की विभिन्न शाखाओं के विशेषज्ञों ने रोग निवारण, रोगों को कम करने और स्वास्थ्य के प्रति लोगों को प्रोत्साहित करने में इन विधियों की भूमिका की सराहना की है.
दरअसल, योग का अभ्यास मानसिक और शारीरिक विकारों अथवा रोगों से बचने और व्यक्ति की रोग प्रतिरोधक क्षमता में सुधार लाने और तनावपूर्ण स्थितियों को सहने के लिए किया जाता है.
सबसे पहले ज़रूरी है कि हम अपनी श्वास के प्रति सजग हो जाएं. श्वास-प्रश्वास ऐसी प्रक्रिया है जो जन्म से लेकर मृत्यु तक इस शरीर से जुड़ी है.
मुख्यत: हमें श्वास-प्रश्वास की प्रक्रिया में सुधार लाना है. इसे हम दो भागों में बाँट सकते हैं.
पहला पूरक अर्थात श्वास लेना और दूसरा रेचक यानी श्वास छोड़ना.
योगाभ्यास करने से पहले मुख्य तौर पर सुनिश्चित कर लें कि आपका पेट खाली हो. भोजन करने के तीन घंटे बाद योगाभ्यास करना चाहिए.
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अगर आपने नाश्ता या हल्का-फुल्का कुछ खाया है तो भी दो घंटे का अंतर ज़रूरी है. चाय आदि के आधे घंटे के बाद ज़रूर कुछ हल्का अभ्यास किया जा सकता है.
समय सुबह का हो तो बहुत बढिया, क्योंकि शौचादि से निवृत होने के बाद पेट खाली होता है तथा मन मस्तिष्क पूरी तरह शांत होते हैं. जो भी अभ्यास आप करेंगे, वे आपको शत-प्रतिशत लाभ देंगे.
कपड़े आपके ढीले-ढाले हों, मौसम के अनुकूल हों ताकि आप तनावमुक्त होकर योग का अभ्यास कर सकें.
साथ ही यह भी ख़्याल रखें कि वातावरण शांत हो, साफ-सुथरा हो, हवा शुद्ध और पर्याप्त हो. योगाभ्यास करने से पहले एक कंबल दोहरा कर बिछाएँ ताकि अभ्यास करने में असुविधा न हो.